एक दिन सुबह सवेरे सैर करते हुए ये ख़याल आया कि :
क्या है इंसान ,
उसकी बनाई एक कठपुतली १
वो डोर खींचता है , नाचता हैं तू पुरी जिंदगी ११
उसकी बनाई दुनियाँ में जी लगाता है क्या इंसान ,
जानता है जाना पडेगा छोड़ ये सब एक दिन शमशान १
करता है गरूर अपनी उपलब्धियों पे ,
करता है छेडछाड कुदरत से हो चूर घमंड में ,
नादाँ है तू , जानता नही ,
खीच लेगा वो डोर तेरी जिंदगी की एक पल में १
गिर जायगा परदा ,
और हो जायगा पटाक्षेप इस नाटक का 11
Friday, August 21, 2009
Thursday, February 19, 2009
Aarzoo
दिल टूट जाता हैं , उम्मीद टूटती नही !
खवाब मर जाते हैं , आशा मरती नही !!
इंसान की आरज़ू भी क्या हैं, खत्म होती नही !!!
खवाब मर जाते हैं , आशा मरती नही !!
इंसान की आरज़ू भी क्या हैं, खत्म होती नही !!!
Monday, February 9, 2009
Bachpan
था वो दौर-ए-हंसी ,
लगती थी भरी धूप भी चाँदनी ,
वो चहकना चिड़ियों सा,
वो मुस्कुराना तारों सा,
कहाँ गये वो दिन, वो रातें !
कल की वो हकीकत ,
आज का स्वप्न हो गयी!
बंद पलकों से , फिसल कर कहाँ फ़ना हो गयी ?
लगती थी भरी धूप भी चाँदनी ,
वो चहकना चिड़ियों सा,
वो मुस्कुराना तारों सा,
कहाँ गये वो दिन, वो रातें !
कल की वो हकीकत ,
आज का स्वप्न हो गयी!
बंद पलकों से , फिसल कर कहाँ फ़ना हो गयी ?
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